कदम शतप्रतिशत मतदान की और !!
कदम शतप्रतिशत मतदान की और !!
भारत 2014 तक 16 लोकसभा चुनाव देख चुका है ,1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में पात्र मतदाताओं की संख्या केवल 17. 3 करोड़ थी वो 2014 में 83. 4 करोड़ हो चुकी है जिसमे 18 वर्ष के युवाओ को प्रदान किया गया मताधिकार एक महत्वपूर्ण घटक रहा, 2019 के चुनाव में ये आंकड़ा कुछ और बढ़ जाने वाला है | 1951 में केवल 53 राजनैतिक दल लोकसभा चुनाव में शामिल हुए थे वही 2014 में इन दलों की संख्या बढ़कर 465 हो चुकी थी | सबसे अहम सवाल लोकतंत्र के इस सबसे बड़े पर्व में लोगो के भाग लेने अर्थात मतदान प्रतिशत का है | इसमें कोई दो राय नहीं कि मतदान वो सबसे बड़ा अधिकार है जो भारतीय संविधान ने अपने नागरिको को प्रदान किया और प्रत्येक भारतीय को अपने इस अधिकार का प्रयोग करना चाहिए | 1951 में पहले लोकसभा चुनाव में केवल 45. 7 प्रतिशत नागरिको ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था और 2014 के चुनावो में ये 66. 3 प्रतिशत तक पहुंचा | कहा जा सकता है कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने लोकतंत्र में आस्था बढ़ाने के लिए समय समय पर जो सुधार या व्यवस्थाएं की उनका प्रभाव भारतीय मतदाताओ पर हुआ लेकिन मतदान प्रतिशत कही न कही इस तथ्य की और भी इशारा तो करता ही है कि अभी भी इस देश के शतप्रतिशत पात्र मतदाता चुनावो से या चुनाव प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं है | ऊपर जो डेटा है वो औसत मतदान का है जबकि इसमें जम्मू एन्ड कश्मीर जैसा राज्य भी शामिल है जहा मतदान 35 -37 प्रतिशत ही रहता है | अर्थात अभी भी सुधार की जरुरत है और ये सुधार क्या और किस रूप में हो थोड़ी चर्चा इस पर --
--- सरकारी कर्मचारियों को तो पोस्टल बैलेट की सुविधा मिल जाती है लेकिन गैर सरकारी क्षेत्र में कार्यरत लोगो या व्यापारियों को जो अपने मूल स्थान से बहुत दूर कार्य करते है उन्हें ये सुविधा नहीं है जिसके चलते ये लोग मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित रह जाते होंगे | मेरी राय में प्रत्येक विधानसभा स्तर पर एक विशेष बूथ बनाया जाए जहा इस तरह के लोग चाहे वे देश के किसी भी क्षेत्र के रहने वाले क्यों नहीं हो अपनी वास्तविक पहचान प्रमाणित कर मताधिकार का प्रयोग कर सके |
--- नागरिको का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो चुनावो के प्रति बेरुखी प्रदर्शित करते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करता | इनकी बेरुखी के कई कारण हो सकते है मसलन --
1 . गठबंधन की सरकारों में अक्सर ये देखा जाता है कि एक ऐसा राजनैतिक दल जिसे केवल 1 %मत मिले उसका प्रतिनिधि केबिनेट मंत्री बना दिया जाता है जो कम से कम बहुमत के सिद्धांत के तो विपरीत है ही ,फिर गठबंधन की सरकारों से लोग अधिक आशान्वित नहीं होते है | इस पर किया जाने वाला सुधार यदि किया जाए तो बेहद क्रांतिकारी होगा लेकिन यदि किया गया तो कारगर और जवाबदेह सरकार के निर्माण में बड़ी भूमिका अदा करेगा | सुधार इस रूप में हो कि लोकसभा चुनाव में भाग लेने की पात्रता केवल उन्ही दलों को हो जो एक निश्चित मत प्रतिशत प्राप्त करते रहे हो ,इन्हे राष्ट्रीय दल कहा जाए | अपने अपने राज्यों में प्रभाव रखने वाले दलों को यदि वे निश्चित मत प्रतिशत प्राप्त नहीं करते है तो इन्हे प्रादेशिक दलों की श्रेणी में रखा जाये | राष्ट्रीय दल केवल केंद्रीय सरकार का गठन करे ,प्रादेशिक सरकारों के गठन से ये दूर रहे ,प्रदेश की सरकार प्रादेशिक दलों द्वारा ही गठित की जाये | ये एक सुधार कई समस्याओ का समाधान है |
2. मतदाता एक बार अपना प्रतिनिधि चुन लेता है लेकिन चुने जाने के बाद यदि वो प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाए तो मतदाता खुद को ठगा सा महसूस करता है | बेशक निर्वाचन आयोग ने नोटा की व्यवस्था की है लेकिन ये औचित्यहीन है क्योंकि चुनाव परिणाम इससे प्रभावित होते ही नहीं है | इसे समाप्त कर राइट टू रिकॉल का अधिकार दिया जाना चाहिए ,ये अधिकार यदि मिला तो कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि अपने उत्तरदायित्वों से भाग ही नहीं पायेगा और राजनैतिक दल भी सोच समझकर ही अपने प्रत्याशियों का चयन करेंगे जिसके बाद नोटा की जरुरत नहीं रहने वाली |
3. राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव पूर्व वादे तो बहुत किये जाते है लेकिन यदि वो बहुमत प्राप्त कर सरकार बनाने के बाद उन वायदों को पूरा नहीं करे तब भी उन्हें फ़िक्र नहीं होती क्योंकि जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती | मेरी राय में निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वो प्रत्येक राजनैतिक दल के घोषणा पत्र के साथ एक शपथ पत्र ले जिसमे किये गए वायदों को अधिकतम 4 वर्ष की अवधि में पूरा करने की शपथ राजनैतिक दल द्वारा ली जाये | पांचवे वर्ष में चुनाव आयोग समीक्षा करे और यदि राजनैतिक दल अपनी शपथ पर खरा नहीं उतरे तो उसे दण्डित किया जाए ,ये दंड उसके सभी सीटों पर या कुछ प्रतिशत सीटों पर एक निश्चित अवधि तक चुनाव लड़ने के प्रतिबन्ध के रूप में हो |
4. आचार संहिता लग जाने के बाद निर्वाचन आयोग की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है मेरी राय में इस स्थिति में निर्वाचन आयोग को आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले दलों या प्रत्याशियों के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाना चाहिए ,क्योंकि अब तक देखने में आया है कि निर्वाचन आयोग लचीला रुख अपनाता है जिससे लोग संतुष्ट नहीं है |
क्या आपको लगता है ये सुधार किये जाने के बाद हम शतप्रतिशत मतदान की और बढ़ सकेंगे ?
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